Abstract : विचारधारा और साहित्य सदा एक दूसरे के लिए अपरिहार्य रहे हैं। विचारधारा साहित्य की रीढ है तथा साहित्य विचारधारा का आत्मबल। विचारविहीन साहित्य सामान्य जनता के जीवन में अपना स्थान नहीं बना सकता, उसी प्रकार आत्मबलविहीन विचारधारा भी सामान्य जनता का बौधिक हथियार नहीं बन सकता। विचारधारा और साहित्य दोनों के मेल से जो साहित्य रचित होता है वही जनसाधारण के मन का सामथ्र्य रखता है। इस प्रकार विचारधारा में सामाजिक परिवर्तन लाने की क्षमता होती है।