मानव का जन्मे भावनाओं के साथ होता है। वह अपने भाव अथवा मनोविकारों को प्रस्तुहत करना मानव का प्रकृति सहज गुण हैं। अपने भावनाओं की रसयुक्ता प्रस्तु ति से ही उसका चरित्र बनता है। इसी भावनाओं का आदान-प्रदान ही दृश्यण काव्य। है।