Abstract : साधारण जन प्रेम से ही बढ़ते हैं और प्रेम से ही सबको बढ़ाते हैं| अगर प्रेम रूपी आनंद न हो तो जीव-लोक नष्ट हो जाता है| प्रेम स्वार्थ का कारण है और वह स्वार्थ के त्याग में भी है| अगर प्रेम रस न हो तो मानव-मानव में जो अंतर है, वह न हो| प्रेमांकुर कब, कहाँ, कैसे