Abstract : अब तक हुए ‘साहित्य शोध और अध्ययन’ से स्पष्ट है कि हिन्दी साहित्य में ‘व्यंग्य विधा’ का अब अलग ही महत्व है। हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा की स्थापना के लिए अनेक संघर्ष होते रहें। आधुनिक साहित्यद सृजन के क्षेत्र में स्वतंत्रतापूर्व भारतेन्दु साहित्य काल में ही व्यंग्य प्रत्येक विधा के रूप में पनपने लगा था। प्रथमतः व्यंग्य ‘हास्य’ के रूप में ही जाना जाता था। कालांतर में हास्य और व्यंग्य दोनों का अलग विमर्श होने लगी।