‘सिद्धयसिद्धयो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्यते।’ अर्थात - दुख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वंद्वों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।